दुनिया भर में एक मई को मजदूर दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दुनिया के सभी अधिकारी, कर्मचारी एवं शिक्षकों के लिए अलग-अलग देश में अलग-अलग कानून का निर्माण किया जाता है। हर देश की सरकार कानून में सुविधा अनुसार परिवर्तन कर लेती है। कार्मिक ही किसी भी संस्थान व उद्योग की रीढ होते हैं। इन्हीं के माध्यम से उसकी उत्पादकता एवं उत्पादन क्षमता तय होती है। इन्ही से लाभ व हानि का भी पता चलता है।
जैसा कि हम जानते ही हैं कि मनुष्य जब से जीवन धारण करता है वह कुछ ना कुछ करता ही रहता है और जब वह वयस्क हो जाता है तभी जाकर उसको एक कार्मिक के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। यदि वह वयस्क होने से पहले श्रम करता है उसके बदले उसको कुछ धन मिलता है तो यह श्रम कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। पूर्व में कार्मिकों से 12 से 14 घंटे भी काम लिया जाता रहा। महिलाओं से भी अधिक कार्य लिया जाता रहा। फिर जाकर क्रांति हुई विभिन्न बुद्धिजीवियों के माध्यम से विभिन्न सरकारों पर दबाव पड़ा और उन्हें कार्य के घंटे निर्धारित करने पड़े जो कि अब 8 घंटे निर्धारित किए गए हैं।
श्रमिकों की जागरूकता एवं संघर्ष के कारण ही महिलाओं को “मेटरनिटी लीव” की सुविधा प्रदान की गई है। विभिन्न कार्मिकों के संगठन, संघ, कल्याण एसोसिएशन, फेडरेशन, ट्रेड यूनियन सभी देशों में कार्य कर रहे हैं।
सर्वप्रथम अमेरिका में एक मई 1886 में शिकागो में 8 घंटे काम के लिए निर्धारित करने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन में पुलिस के साथ झड़पों में कई मजदूर शहीद हुए उन्हें भी हम भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सन 1889 में एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की घोषणा “द सेकंड इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस” में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई।
भारत में पहली बार 1923 में चेन्नई में मजदूर दिवस मनाया गया। तब से लेकर प्रतिवर्ष एक मई को मजदूर दिवस अथवा कामगार दिवस के रूप में मनाया जाता है। न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण किया गया इसके लिए भी कानून बनाए गए। निजी एवं सरकारी क्षेत्र में सभी जगह न्यूनतम वेतन व स्वास्थ्य सेवाएं इत्यादि पर विशेष ध्यान दिए जाने लगा। लेकिन अभी भी सुधार की आवश्यकता महसूस की जाती रही हैं।
भारत देश के परिपेक्ष में निजीकरण एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या के सामने उभर कर आया है। पूंजीपतियों के द्वारा उनसे अपने अनुसार काम लेकर कम मजदूरी दी जाती है। यह चिंता का विषय है। जो कार्य अधिक श्रमिकों द्वारा किया जाना है, उसको कम श्रमिक रख कर ही पूरा करने का दबाव प्रबंधन तंत्र के द्वारा श्रमिकों पर लगातार बनाया जाता है। जिसके कारण कई दुर्घटनाएं भी होती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कार्मिकों की सेवा शर्तों एवं उनके परिवार के कल्याण के लिए एक सशक्त अधिनियम बनाए जाने की नितांत आवश्यकता है। सेवाओं के दौरान अधिकारियों द्वारा बहुत सारे आदेश ऐसे निकाले जाते हैं जो कि उक्त कार्मिक के कार्य क्षेत्र में नहीं आते हैं या इसके लिए वह योग्य नहीं है। फिर भी उनको वह कार्य करने पड़ते हैं।
जब वह नहीं कर पाते हैं या कुछ गलती हो जाती है तो उनको निलंबित या बर्खास्त किया जाता है। उनकी जांच को सही समय पर पूरा नहीं किया जाता है। अधिकारियों के लिए जांच का समय निर्धारित नहीं होता है और यदि निर्धारित होता भी है तो वह निर्धारित समय में इस कार्य को पूरा नहीं करते हैं और जिसका पूरा खामियाजा कार्मिक के साथ उसके परिवार को भी भुगतना पड़ता है।
कई बार तो ऐसा भी देखा जाता है कि कोई कार्मिक जिस दिन सेवानिवृत होने वाला है उसके कुछ दिन या कुछ घंटे पहले ही उसको निलंबित कर उसके सभी देयकों पर रोक लगा दी जाती है, जो की मानव कल्याण एवं सामाजिक न्याय की दृष्टि से अनुचित प्रतीत होता है। भारत में काफी समय से राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक आयोग के गठन किए जाने की मांग भी की जा रही है, उसकी भी नितांत आवश्यकता है। जिससे कि हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में चल रहे विभिन्न मुकदमों में पारदर्शी व निष्पक्ष सामाजिक न्याय की परिकल्पना को पूर्ण किया जा सके।
साथ ही साथ भारत देश के अंतिम नागरिक तक सभी सुविधाएं पहुंचाने हेतु सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए। संवैधानिक रूप से भारत का संविधान की अनुसूची में सम्मिलित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ी जाति के कार्मिकों के संगठनों को भी सेवा संघों के रूप में राज्य सरकारों द्वारा राज्य स्तर एवं भारत सरकार द्वारा केंद्र स्तर पर भी मान्यता प्रदान की जाए। जिससे सभी वर्गों की समस्याओं को सक्षम स्तर पर रखा जा सके और उनके निराकरण में शीघ्र अति शीघ्र कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके। तभी जाकर मजदूर दिवस मनाए जाने की सार्थकता साबित हो सकेगी।
Reported By: Shiv Narayan